पाँच ऐसी जगहे जहा रावण की पूजा होती है (Five places where worships ravana)
08 अक्टूबर को सम्पूर्ण भारत में दशहरा का त्यौहार मनाया जाएगा इस त्यौहार को लोग बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मानते है। अतः इस त्यौहार को लोग विजय दशमी के रूप में भी जानते है। हिन्दू ग्रंथो के अनुसार इसी दिन भगवान् राम ने रावण का वध किया था। जिसके स्मरण स्वरुप लोग रावण का पुतला जलाते है। लेकिन भारत में ही कई ऐसी जगहे है रावण को जलाया नहीं पूजा जाता है। कर्नाटक, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसी जगहे है जहाँ राम नहीं रावण की पूजा होती है और दशहरा के दिन यहाँ शोक मनाया जाता है।
कर्नाटक
कर्नाटक राज्य के कोलार जिले में लोग फसल महोत्सव के दौरान जुलुस निकल कर रावण की पूजा की जाती है। कारण पूछने पर लोगो ने बताया की रावण भगवान् शिव का परम भक्त था जिसके कारण ही जुलुस में भगवान् शिव के प्रतिमा के साथ रावण की भी प्रतिमा होती है। एक अन्य जिले मांड्या के मालवल्ली तहसील में रावण का एक भव्य मंदिर है। जिसे लोग पूरी श्रद्धा के साथ पूजते है।
राजस्थान
राजस्थान के जोधपुर जिले में मंदोदरी नामक गाँव को रावण और विवाह का विवाह स्थल मन जाता है। विवाह स्थल पर आज भी रावण की चवरी नामक एक छत्र मौजूद है। जोधपुर के चांदपोल चांदपोल क्षेत्र में रावण का मंदिर है।
हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बैजनाथ क़स्बा है यहाँ के लोग भी रावण की पूजा पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ करते है। यहाँ के लोग दशहरा नहीं मनाते और रावण का पुतला जलाना महापाप मानते है। जिसके पीछे मान्यता यह है की दशानन रावण ने शिव नगरी कहे जाने वाली इस बैजनाथ की भूमि पर कुछ साल भगवन शिव की कठोर तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था ।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में भी राक्षसराज रावण का पुतला नहीं जलाया जाता बल्कि पूजा होती है। मान्यता यह यह है रावण मंदसौर का दामाद था। रावण की धर्म पत्नी मंदोदरी यही की निवासी थी। मंदोदरी के कारण ही दशपुर का नाम मंदसौर पड़ा।मंदसौर में ही खानपुर नमक जगह पर रावन रुंडी नामक स्थान पर रावण की विशाल प्रतिमा है। इसी राज्य के विदिशा जिले के एक गांव में भी रावण की पूजा होती है।
उत्तर प्रदेश
सूबे के प्रसिद्ध शहर कानपुर में दशानन रावण की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को १८९० में स्थापित किया गया था। यह मंदिर पूरे वर्ष में केवल एक बार दशहरे के दिन ही खोला जाता है और भव्य आरती की जाती है। यहाँ पर रावण की पूजा शक्ति के रूप में होती है यहाँ आने वाले समस्त भक्त तेल के दिए जलाते है और अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए रावण से प्रार्थना करते है।परंपरा के अनुसार सुबह मंदिर को खोलकर साज श्रृंगार कर के आरती हवन करके शाम को फिर एक वर्ष के मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है।
कर्नाटक
कर्नाटक राज्य के कोलार जिले में लोग फसल महोत्सव के दौरान जुलुस निकल कर रावण की पूजा की जाती है। कारण पूछने पर लोगो ने बताया की रावण भगवान् शिव का परम भक्त था जिसके कारण ही जुलुस में भगवान् शिव के प्रतिमा के साथ रावण की भी प्रतिमा होती है। एक अन्य जिले मांड्या के मालवल्ली तहसील में रावण का एक भव्य मंदिर है। जिसे लोग पूरी श्रद्धा के साथ पूजते है।
राजस्थान
राजस्थान के जोधपुर जिले में मंदोदरी नामक गाँव को रावण और विवाह का विवाह स्थल मन जाता है। विवाह स्थल पर आज भी रावण की चवरी नामक एक छत्र मौजूद है। जोधपुर के चांदपोल चांदपोल क्षेत्र में रावण का मंदिर है।
हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बैजनाथ क़स्बा है यहाँ के लोग भी रावण की पूजा पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ करते है। यहाँ के लोग दशहरा नहीं मनाते और रावण का पुतला जलाना महापाप मानते है। जिसके पीछे मान्यता यह है की दशानन रावण ने शिव नगरी कहे जाने वाली इस बैजनाथ की भूमि पर कुछ साल भगवन शिव की कठोर तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था ।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में भी राक्षसराज रावण का पुतला नहीं जलाया जाता बल्कि पूजा होती है। मान्यता यह यह है रावण मंदसौर का दामाद था। रावण की धर्म पत्नी मंदोदरी यही की निवासी थी। मंदोदरी के कारण ही दशपुर का नाम मंदसौर पड़ा।मंदसौर में ही खानपुर नमक जगह पर रावन रुंडी नामक स्थान पर रावण की विशाल प्रतिमा है। इसी राज्य के विदिशा जिले के एक गांव में भी रावण की पूजा होती है।
उत्तर प्रदेश
सूबे के प्रसिद्ध शहर कानपुर में दशानन रावण की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को १८९० में स्थापित किया गया था। यह मंदिर पूरे वर्ष में केवल एक बार दशहरे के दिन ही खोला जाता है और भव्य आरती की जाती है। यहाँ पर रावण की पूजा शक्ति के रूप में होती है यहाँ आने वाले समस्त भक्त तेल के दिए जलाते है और अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए रावण से प्रार्थना करते है।परंपरा के अनुसार सुबह मंदिर को खोलकर साज श्रृंगार कर के आरती हवन करके शाम को फिर एक वर्ष के मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है।
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